Monday, July 28, 2008

बिकाऊ ख़बर

रिपोर्टर साहब आज फिर परेशान हैं.. लाख कोशिशों और दलीलों के बाद भी उनकी ख़बर प्राइम टाइम से गिरा दी गयी हैं। वज़ह आउटपुट के तमाम धुरंधरों को उनकी ख़बर में आज भी कोई न्यूज मैटेरियल नही दिख रहा। जबकि रिपोर्टर साहब आज सुबह से ही पूरे इत्मिनान से थे कि उनकी ख़बर तो आज छा जायेगी। उनकी ये इत्मिनानी दोपहर तक उनके ज़ेहन और दिमाग पर छायी रही.... लेकिन दोपहर की मीटिंग के बाद उनका हवाई किला सीले हुये पटाखे की तरह फुस्स हो गया। जितने सपने थे सब एक बार फिर से बिखर चुके थे। उन्हे रह-रह कर सुबह का वो द्रश्य याद आ रहा था। अभी वो घर से आफिस निकलने के लिये अपनी स्कूटर स्टार्ट कर ही रहे थे कि पडोस के बिन्नू भाई मिल गये ( बिन्नू भाई मोहल्ले के लोकल अख़बार है और सबकी खबर रखना उनका प्रिय शगल है या यूं कहे ये उनका अवैतनिक पेशा है.. बाकी फुरसत में दूसरे काम भी करते है, उनकी खुफिया खबरों की वज़ह से कई बार मोहल्ले में ग्रहयुद्ध जैसी नौबत आ चुकी है) खैर सुबह निकलते वक्त उनकी खबरिया नमस्कार का जवाब देते वक्त उन्हे भी रिपोर्टर साहब ने अपनी स्टाइल में बता ही दिया था...आज तो बस कमाल ही है। रात नौ बजे चैनल देख लीजियेगा। हंगामा मच जायेगा ऐसी ख़बर है कि भूचाल आ जायेगा। आहह.. ये सब कहते वक्त उनके चेहरे पर जो आत्ममुग्ध मुस्कान थी वो बिन्नू भाई की पारखी नज़र भी भांप गयी होगी और पहली फुरसत में ही उन्होनें कम से कम इस ख़बर की सौ पचास कॉपिया तो बांट ही दी होगी। ये सोचकर- सोचकर रिपोर्टर साहब का कलेजा बैठा जा रहा था। अब कैसे घर वापस जाते वक्त मुहल्ले के उन मसखरों से मुंह छुपायेगे जो उन्हे देखते ही पहले से उनकी नकल उतारने लगते है।
मुझसे उनकी ये हालत देखी नही जा रही थी लेकिन उन्हे दिलासा देने का तरीका भी नही समझ में आ ऱहा था। दरअसल मै भी अचंम्भे मे था कि आखिर इतनी बडी खबर कैसे अंडर प्ले की जा सकती है.. फिर मैने पूछा कि भाई आपने किसको बताया था ख़बर के बारे मे... रिपोर्टर साहव थोडा टालने के अंदाज मे बताने लगे.. अमां छोडो भाई खबरों की तो समझ ही नही है किसी को... बस राखी सांवंत को नचा लो इनसे... फिर भी बताओ तो सही.. मैने इसरार किया। तनिक जोर देने पर ही उनके सब्र का बांध टूट गया.. बताने लगे शहर में म्युनसिपिलिटी स्कूल के चार बच्चे भूख से मर गये... मैने पूछा इसमे स्कूल का क्या रोल है। अरे महंगाई के चलते स्कूल में मिलनेवाला मिड डे मील ही उनकी भूख का इंतजाम करता था लेकिन इस बार नये मास्टर से मिली भगत करके सप्लायर ने सारा मिड डे मील पहले ही ब्लैक कर दिया था। लिहाजा मास्टर जी ने पिछले चार दिन से खाना बच्चो में बंटवाया ही नही ऊपर से धमकाते रहे कि बच्चे अपना मुंह बंद रखे। बडे तो भूख सह गये लेकिन क्लास के चार छोटे बच्चे जिनकी उम्र सबसे कम थी नही सह पाये। सप्लायर के साथ मास्टर की सारी करतूत की वीडियो रिकार्डिंग भी है मेरे पास लेकिन कहते है मामला डाउन मार्केट है। प्रेशर है.. टीआरपी नही आयेगी.. ए़डिट करा लो आखिरी बुलेटिन में चलवा देंगे।
सारा माज़रा मेरी समझ में आ गया था.. साहब को टीवी में आये हुये तो चार साल हो गये लेकिन अभी सोच अपने गांव की ही रखते है। गलती बॉस की भी नही उन्हे भी रिजल्ट देना है.. भावनाओ में बहे तो वापसी का टिकट भी उधारी से खरीद के जाना होगा । मैने उनके कान मे खबर बेचने का एक जोरदार तरीका बताया..थोडी देर ना नुकूर के बाद ही उन्हे समझ आ गया था कि या तो मेरे तरीके पर अमल करें या फिर आज फिर अपने स्कूटर की बत्ती बुझा कर अपने मुहल्ले की गली मे चोरो की तरह जाये।
खैर उसूलों पर मजबूरी भारी पडी या बिन्नू भाई के बंट चुके अख़बारों का ख़ौफ़ ज्यादा था.. या फिर कुछ और... कुछ देर बाद रिपोर्टर साहब लाइब्रेरी मे शहर के टॉप स्कूलों के बिज्युवल्स निकाल रहे थे और साथ में ये भी ध्यान दे रहे थे कि सामने दिखनेवाले बच्चे चेहरे से थोडे अमीर घरो के हो। इसके बाद मुझे बस इतना याद है कि वो एक फिर सीना तान के आफिस में इधर घूम रहे थे... लगता है फार्मूला काम कर गया था। जैसे ही घडी ने नौ बजाये..रिपोर्टर साब की धडकने तेज हो गयी ... ख़बर देखकर एकबारगी लगा कि कोई और ही ख़बर चल रही है लेकिन मेरी मुस्कुराहट ने उनकी धडकनों की स्पीड को कंन्ट्रोल किया और उन्हे भरोसा हो गया कि ये वही ख़बर है जो थोडी देर पहले कूडा समझ के गिरा दी गयी थी। मामला हाई प्रोफाइल हो गया था।
भावातिरेक मे उनके हाथ अचानक अपने चेहरे पर चले गये.. महसूस हुआ कि खबर बिकने की खुशी में उनकी आँखो से अश्रुधारा बह निकली है। उन्होंने बेहद शुक्रियाई नज़रों से मेरी तरफ देखा। मै समझ कल भी लंच भाई ही करायेगा। इसी बीच आँफिस के किसी कोनें से आवाज आयी.... अबे बेंच दी ख़बर।।।

Wednesday, July 23, 2008

आँलपिन के बारे में...

कुछ अजीब सा नाम है... आँलपिन.. आप ज़रूर सोच रहे होंगें कि कितना चुभता सा शब्द है.. लेकिन ज़रा सोच कर देखिये इसका बड़ा ही गूढ़ अर्थ है...आँलपिन यानि जो सब चीजो को संजो के रखे। बेशक ये चुभती है.. लेकिन तमाम बिखरी चीजों को एकजुट भी करती है। अगर आँलपिन के चुभने से दर्द होता है तो आँलपिन से किसी कांटे का दर्द भी दूर होता है.. बस थोड़ा इस्तेमाल का फ़र्क है.. थोड़ा नज़रिये का.. मेरा ये ब्लॉग इसी फ़र्क की दास्तान है...